कौन है गब्बर सिंह नेगी ?(Gabar Singh Negi – Garhwal Rifle Warrior)

गबर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi) एक वीर भारतीय सैनिक थे, जिन्हें प्रथम विश्व युद्ध में अपनी शौर्यता के लिए विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था। विक्टोरिया क्रॉस ब्रिटिश और कॉमनवेल्थ सेनाओं को शत्रु के सामने सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है। गबर सिंह नेगी का जन्म 21 अप्रैल 1895 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के मंजौर गांव में हुआ था। उन्होंने अक्टूबर 1913 में गढ़वाल राइफल में भर्ती होकर देश की सेवा की।

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गबर सिंह नेगी की जीवनी

गबर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi) का जन्म 21 अप्रैल 1895 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के मंजौर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री बद्री सिंह नेगी और माता का नाम श्रीमती सावित्री देवी था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव के पास के एक पाठशाला में प्राप्त की। छोटी उम्र में ही पिता की मृत्यु के होने के कारण घर की सारी जिम्मेदारी इनके ऊपर आ गई लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और वर्ष 1911 में इन्होंने टिहरी नरेश के प्रतापनगर स्थित राजमहल में नौकरी करनी शुरू कर दी।
1 साल बाद 1912 में इनकी शादी मखलोगी पट्टी के छाती गांव की सत्तूरी देवी से हुई। गबर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi) राजमहल में नौकरी तो कर रहे थे लेकिन उनका वहां मन नहीं लग रहा था वे फौज में भर्ती होना चाहते थे इसलिए मखलोगी पट्टी में केवल सितंबर 1913 तक की नौकरी कर पाए।
ठीक उसी दौरान प्रथम विश्वयुद्ध की आशंका से फौज में भर्ती होने का दौर शुरू हुआ। गबर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi) को शुरू से ही फौजी वर्दी व सेना में भर्ती होने का लगाव था। वह इसी मौके की तलाश में थे वह सेना में भर्ती होने के लिए लैंसडाउन जा पहुंचे और अक्टूबर 1913 में गढ़वाल रेजीमेंट की 2 / 39 बटालियन में बतौर राइफलमैन भर्ती हुए।
गब्बर सिंह नेगी और प्रथम विश्व युद्ध
गबर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi) एक वीर सिपाही थे, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश भारतीय सेना की ओर से लड़ा और अपनी शौर्यता के लिए विक्टोरिया क्रॉस, शत्रु के सामने सर्वोच्च और सर्वाधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार, प्राप्त किया। वे 21 अप्रैल 1895 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के मंजौर गांव में एक गरीब परिवार में पैदा हुए थे। उन्हें बचपन से ही देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा था। इसी जज्बे से उन्होंने अक्टूबर 1913 में गढ़वाल राइफल में भर्ती हो गये।

भर्ती होने के कुछ ही समय बाद गढ़वाल राइफल के सेनिकों को प्रथम विश्व युद्ध के लिए फ्रांस भेज दिया गया, जहां 1915 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान न्यू शैपल में लड़ते-लड़ते 20 साल की अल्पायु में ही वो शहीद हो गए। उन्होंने अपनी बटालियन को जर्मन सेना के खिलाफ अग्रसर करने में मदद की और अपने आप को एक बम से उड़ा दिया, जिससे उनके साथी सैनिकों को बचाया गया। उनकी इस वीरता को देखते हुए, उन्हें मरणोपरांत विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया। वे सबसे कम उम्र में विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित होने वाले शहीद थे।

उनके मरणोपरांत से 21 अप्रैल को चंबा में स्थित उनके स्मारक पर गढ़वाल राइफल द्वारा रेतलिंग परेड कर उन्हें सलामी दी जाती है। और गढ़वाल राइफल का नाम विश्वभर में रोशन करने वाले वीर गब्बर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi) की कुर्बानी को याद करने के लिए हर वर्ष शहीद मेले के रूप में मनाया जाता हैं।
शौर्य का वो दिन
10 मार्च 1915 को सुबह 5:00 बजे जब चारों को कोहरा छाया था गढ़वाल राइफल्स के जवानों ने जय बद्री विशाल के जयघोष के साथ आगे बढ़ना शुरू किया। दलदल वर्षा और भीषण ठंड की परवाह न कर गढ़वाली रणबांकुरे आगे बढ़ें। उनके हर कदम के साथ जर्मन टैंक गरजने लगी और ऊपर से जर्मन लड़ाकू विमान भीषण बमबारी करने लगे। इधर गढ़वाल राइफल्स की टुकड़ी घुटने व कोहनी के नम गली सतह पर एक-एक इंच जीतने के लिए कदम-कदम बढ़ रहे थे और अपने प्राणों की आहुति दे रही थे। इसी सेना की टुकड़ी में था 20 वर्षीय राइफलमैन गब्बर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi)।

यह सोचने वाली बात है कि एक 20 वर्षीय नौजवान जो अभी जिंदगी की सीढ़ी पर कदम रख रहा था। वह प्रथम विश्व युद्ध की इस भीषण आग में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करता हुआ नजर आ रहा था और अपना सर्वस्व बलिदान का ध्येय बढ़ चुका था।
मोर्चे पर दोनों ही सैनिक इतने निकट आ गई थी कि राइफल से गोली चलाना असंभव था तो युद्ध गुत्थम गुत्था की लड़ाई में बदल गया।

गढ़वाली रणबांकुरे अपनी खुकरी से दुश्मनों को मरने लगे और जय बद्री विशाल के जयघोष के साथ जर्मन सैनी के लहू से जमीन लाल रंग से रंगते गए। गब्बर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi) दर्जनभर जर्मन सैनिकों को मार चुका था और रेंगते हुए लाशों के बीच आगे बढ़ रहा था। इधर जर्मन सैनिकों ने ब्रेनगन से गोली बरसाना शुरू कर दिया। ब्रेनगन की अंधाधुंध चलती गोलियों से भारतीय सैनिकों का जीवित बचना असंभव था। अगर ब्रेनगन का मुंह बदा ना किया जाता तो कई सैनिकों की क्षति हो जाती।

उसी समय इस 20 वर्षीय नौजवान गब्बर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi) ब्रेनगन की तरफ आगे बढ़ा। लाशों के बीच से कोहनी के बल आगे बढ़ते हुए ब्रेनगन के सामने जा पहुंचे और उस आग उगलने वाली गन का रुख पलट कर जर्मन सैनिकों की ओर मोड़ दिया। ब्रेनगन का रुख जर्मनी सैनिकों की ओर मोड़ने पर सैकड़ो जर्मन सैनिक अधिकारी मर गए वा कई दर्जन घायल हो गए।
इस भीषण क्षति के कारण दुश्मन को आत्मसमर्पण करना पड़ा। न्यूसेपल के मोर्चे पर 350 जर्मन सैनिक तथा अफसरों को गिरफ्तार किया गया। भारी संख्या में टैंक टॉप राइफल और गोलाबारूद जब्त किया गया।

गढ़वाली रणबांकुरे द्वारा इस मोर्चे को जीतने के बाद जय बद्री विशाल के जयघोष से फ्रांस का यह न्यूसेपल मोर्चे गुंजने लगा। अंग्रेजी सैनिक अफसरों द्वारा गढ़वाल रणबकरों की इस जीत के बाद उन्हें रॉयल सम्मान से सम्मानित करने का निर्णय लिया गया तभी से गढ़वाल राइफल्स, रॉयल गढ़वाल राइफल्स के नाम से कहलाने लगी।
इस रॉयल सम्मान के बाद गढ़वाल राइफल्स के जवानों को भारतीय सेना में विशेष पहचान के रूप में दाहिने कंधे पर लटकती विशेष प्रकार की चमचमाती लाल रसीली प्रदान की गई। यह लाल रसीली आज भी उनकी बहादुरी और शौर्य का प्रतीक है।
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विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित गब्बर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi)

राइफलमैन गब्बर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi) ने यूं तो न्यूसेपल के मोर्चे पर मजबूत शौर्य प्रदर्शन किया। परंतु वह इस विश्व युद्ध में अपनी जान गवा बैठे। अंग्रेजी सैन्य अधिकारियों द्वारा राइफलमैन गब्बर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi) के अदम्य शौर्य के कारण उन्हें अंग्रेजी के सम्मान विक्टोरिया क्रॉस मरणोपरान्त प्रदान किया गया।
इसी सम्मान को विश्व युद्ध की समाप्ति पर भारत के तत्कालीन वायसराय ने दिल्ली में संपन्न भव्य विजय समारोह में गब्बर सिंह नेगी की पत्नी को प्रदान किया। गब्बर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi) की स्मृति में सन 1925 में टिहरी गढ़वाल जनपद के चंबा नगर में १ भव्य स्मारक बनाया गया जिस पर प्रतिवर्ष 21 अप्रैल को मेला लगता है यहां पर सैनिक देश पर बलिदान होने की शपथ लेते हैं।
गब्बर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi) जैसे सैनिकों के अदम्य साहस गढ़वाल राइफल्स द्वारा शौर्य की वीरता को देखते हुए जर्मनी का तानाशाह हिटलर भी अचंभित हुआ था। यही नहीं विदेशी सैनिकों ने भी भारत के सैनिकों की दात दी। यही वजह है कि सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के निर्माण के समय जर्मनी के तानाशाह द्वारा हिंदुस्तान सैनिकों को विश्व युद्ध से अलग रखने की कोशिश की जाती रही।
गढ़वाली वीर गीत
बढ़े चलो गढ़वालियों
बढ़े चलो, बढ़े चलो……………..2
सिंह की दहाड़ पर
जुल्म के पहाड़ पर
दुश्मनों के सीने से
चढ़े चलो
बढ़े चलो गढ़वालियों
बढ़े चलो, बढ़े चलो…………..2
पत्थर जो आए सामने ठोकर से हटा दो
पहाड़ी आए सामने सीने से हटा दो
ये आंधियां बड़े अगर करे मुकाबला
तुम आग बनकर आंधियों के पंख जला दो,पंख जला दो
बढ़े चलो गढ़वालियों
बढ़े चलो, बढ़े चलो……………..2
दिल में जिगर आंख में ज्वाला भी चाहिए
तलवार चाहिए ना कोई ढाल चाहिए
गढ़वालियों के खून में उबाल चाहिए,उबाल चाहिए।
बढ़े चलो गढ़वालियों
बढ़े चलो, बढ़े चलो…………..2
हमको अमर बद्री विशालाल की कसम
निज पूर्वजों की आन बान शान की कसम
जननी धरा वसुंधरा गढ़वाल की कसम, गढ़वाल की कसम।
बढ़े चलो गढ़वालियों
बढ़े चलो, बढ़े चलो…………..2
सिंह की दहाड़ पर
जुल्म के पहाड़ पर
दुश्मनों के सीने से
चढ़े चलो
बढ़े चलो गढ़वालियों
बढ़े चलो, बढ़े चलो…………..2

FAQs
1. गब्बर सिंह नेगी का जन्म कब और कहां हुआ?
गबर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi) का जन्म 21 अप्रैल 1895 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के मंजौर गांव में हुआ था।
2. गब्बर सिंह नेगी के माता-पिता का नाम?
उनके पिता का नाम श्री बद्री सिंह नेगी और माता का नाम श्रीमती सावित्री देवी था।
3. गब्बर सिंह नेगी की पत्नी का नाम क्या है ?
उनकी पत्नी का नाम सत्तूरी देवी था।
4. गब्बर सिंह नेगी ने कौन सा युद्ध लड़ा था ?
गब्बर सिंह नेगी ने प्रथम विश्व युद्ध (10 मार्च 1915) के दौरान ब्रिटिश भारतीय सेना की ओर से युद्ध लड़ा था।
5. गब्बर सिंह नेगी को कौन से पुरस्कार से सम्मानित किया गया ?
अंग्रेजी सैन्य अधिकारियों द्वारा राइफलमैन गब्बर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi) के अदम्य शौर्य के कारण उन्हें अंग्रेजी के सम्मान विक्टोरिया क्रॉस मरणोपरान्त प्रदान किया गया।
6. गब्बर सिंह नेगी की मृत्यु कब हुई थी ?
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान (10 मार्च 1915) में ब्रिटिश भारतीय सेना की ओर से लड़ते वक्त गब्बर सिंह नेगी शहीद हुए थे।
7. गब्बर सिंह नेगी की जयंती कब मनाई जाती है ?
गब्बर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi) की स्मृति में सन 1925 में टिहरी गढ़वाल जनपद के चंबा नगर में १ भव्य स्मारक बनाया गया जिस पर प्रतिवर्ष 21 अप्रैल को मेला लगता है यहां पर सैनिक देश पर बलिदान होने की शपथ लेते हैं।