Musical Instruments of Uttarakhand (उत्तराखंड के संगीती उपकरण) (संगीत कला)

musical Instruments Of Uttarakhand उत्तरी भारत का एक राज्य, की एक समृद्ध और विविध संगीत परंपरा है जो क्षेत्र की सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता को दर्शाती है। उत्तराखंड का संगीत स्थानीय जीवन शैली से गहराई से जुड़ा हुआ है, और यह विभिन्न सामाजिक और धार्मिक समारोहों में एक आवश्यक भूमिका निभाता है। एक वाद्य यंत्र का निर्माण या प्रयोग, संगीत की ध्वनि के रूप में सामने आता है। सिद्धांत रूप से, कोई भी वस्तु जो ध्वनि उत्पन्न करती है, वाद्य यंत्र कह सकता है और वैज्ञानिक अध्ययन, अंग्रेजी में ऑर्गेनोलोजी विभाग है। केवल वाद्य यंत्र का उपयोग संगीत रचना वाद्य कहलाती है।
उत्तराखंड के संगीती उपकरण / वाद्य के रूप में एक विवादित यंत्र की तिथि और उत्पत्ति 67,000 वर्ष पुरानी मानी जाती है; कालकीर्तिया जिसमें सामान्यतः प्रारंभिक बांसुरी शामिल है, लगभग 37,000 वर्ष पुरानी मानी जाती है। हालाँकि, अधिकांश इतिहासकारों का मानना है कि वाद्य यंत्र के अविष्कार का एक विशिष्ट समय निर्धारित कर पाना परिभाषा के व्यक्तिपरक होने का कारण मुस्किल है।
उत्तराखंड राज्य की समृद्ध लोक संगीत परम्परा में चारों प्रकार के वाद्य बजाये जाते रहे हैं, जो इस प्रकार हैं

1. धातु या घन वाद्य
2. चर्मवाद्य
3. तार या तांत वाद्य
4. सुषिर या फूक वाद्य
5. अन्य वाद्य
वर्तमान उत्तराखंड में प्रायः ढोल, दमाऊं, ढोलकी, हुड़की, डौंर, थाली, मोछंग, बांसुरी, तुर्री, भकोरा, नगाड़ा, सारंगी, मसक बाजा, रणसिंगा एकतारा, शंख, अलगोजा, चिमटा, बिणाई, डफली आदि का ही अधिक प्रचलन हैं।
यह रहे उत्तराखंड के कुछ वाद्य यंत्र:- (Uttarakhand) उत्तराखंड के संगीती उपकरण
Table of Contents
ढोल, दमाऊं

- ढोल: उत्तराखंड के संगीती उपकरण ढोल एक बड़े ड्रम की तरह होता है, जिसे लकड़ी और ताउ के मिश्रण से बनाया जाता है। यह ड्रम दो साधनों के साथ बजाया जाता है और जिसका ध्वनि उत्तराखंड के लोक संगीत के प्रमुख हिस्से में होता है। ढोल का आकार बड़ा होता है और उसकी धुन आकर्षक और उत्साहजनक होती है।
- डमाऊ:उत्तराखंड के संगीती उपकरण डमाऊ एक बढ़कर आकार का छोटा ड्रम होता है, जिसे लकड़ी और ताउ से बनाया जाता है। इसका ध्वनि ढोल के समान होता है, लेकिन यह छोटे आकार की वजह से पारिप्रेक्ष्य में किया जाता है।
ढोल और डमाऊ आमतौर पर त्योहारों, जैसे कि शादियों और धार्मिक उत्सवों के दौरान बजाए जाते हैं और उत्तराखंड के लोक संगीत में जीवन की धड़कन की भाषा के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
ढोलकी

उत्तराखंड के संगीती उपकरण ढोलकी एक छोटा हाथ से बजाया जाने वाला ड्रम है, जिसका उपयोग लोक संगीत और नृत्य प्रदर्शनों में किया जाता है। इसका आकार छोटा होता है और इसे एक हाथ में पकड़ा जाता है और दूसरे हाथ से बजाया जाता है। ढोलकी का ध्वनि सजीव और मनोरंजनक होता है, और यह संगीती प्रदर्शनों के साथ गाया जाने वाले पारंपरिक गीतों की आवाज को सहायता प्रदान करता है।
इसका उपयोग बगपात, गीत-नृत्य, और सामाजिक और पर्व-त्योहारों के दौरान किया जाता है, जिससे लोग गीतों के साथ नृत्य करते हैं और खुशियों का आनंद लेते हैं।
डौंर
“डौंर” एक प्रकार का लोक संगीती उपकरण होता है जो उत्तराखंड राज्य के चमोली, पौरी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, और बागेश्वर जिलों में पाया जाता है। यह खासतर पौरी और चमोली जिलों के लोक संगीत में प्रमुख भूमिका निभाता है।
डौंर एक प्रकार की वाद्य यंत्रा होती है, जिसमें दो लकड़ी के पट्टों को एक साथ बाँधकर बजाया जाता है। यह उपकरण पुराने समय से ही उत्तराखंड के लोगों के लोक संगीत में प्रयोग होता आया है और अकसर गीत गाने के साथ मेल मिलाकर बजाया जाता है। डौंर का ध्वनि बहुत ही आकर्षक होता है

मोछंग

उत्तराखंड के संगीती उपकरण “मोछंग” एक प्रकार का वाद्य यंत्रा है, जिसे भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में खेले जाने वाले अनेक लोक संगीत प्रदर्शनों में प्रयोग किया जाता है। मोछंग एक प्रकार की झूली जैसी वाद्य यंत्रा होती है, जो मुख से बजाई जाती है।
मोछंग लकड़ी, प्लास्टिक, या मेटल से बना होता है और इसमें एक प्रकार की धातु या लकड़ी की चाबियां होती हैं, जिन्हें दांतों के बीच में रखकर बजाया जाता है। बाजु में एक दांती तंतु डंडा लगा होता है, जिसका उपयोग तंतु को मोछंग के मुख से छोड़ने के लिए किया जाता है।
मोछंग का ध्वनि अद्वितीय और मनोहास्य होता है और इसका प्रयोग लोक संगीत प्रदर्शनों में, धार्मिक पाठशालाओं में, और अन्य सामाजिक आयोजनों में किया जाता है। इसका उपयोग लोक गानों, किस्सों, और कहानियों के साथ भी किया जाता है, और यह वाद्य यंत्रा भारतीय संगीत और सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
बांसुरी


उत्तराखंड के संगीती उपकरण बांसुरी, जिसे इंग्लिश में “flute” कहा जाता है, एक प्रसिद्ध संगीत वाद्य उपकरण है जो एक प्रकार की बांस की खोखली सुरंग की तरह होता है और ध्वनि उत्पन्न करने के लिए उसके एक या एक से अधिक सुरों को ब्लोक करके बजाया जाता है। बांसुरी भारतीय संगीत के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में मानी जाती है और यह बड़े ही प्रिय और प्रशंसित उपकरण में से एक है।
बांसुरी का आकार और डिज़ाइन विभिन्न हो सकते हैं, लेकिन सामान्य रूप में यह लगभग 50 से 70 सेंटीमीटर लंबी होती है और सामान्यत: 6 सुरों वाली होती है। इसकी चुम्बक वाली ढीली ओर सीढ़ी छद्मक बांसुरी की ध्वनि में विविधता पैदा करने में मदद करती है।
बांसुरी के साथ खेलने वाले संगीतकार अक्सर विभिन्न रागों के अनुसार इसकी सुरों को बजाते हैं, और इसे क्लासिकल संगीत, लोक संगीत, और भजनों के रूप में विभिन्न प्रकार के संगीत को प्रस्तुत करने में उपयोग किया जाता है।
बांसुरी का वादन करते समय शिल्पी या कलाकार अपने होंठों को इसके सुरों के साथ मिलाकर ध्वनि उत्पन्न करते हैं, और इसे आवाज का एक सुंदर और मेलोडियस रूप माना जाता है। बांसुरी एक अद्वितीय और शांत संगीत उपकरण है जो भारतीय संगीत के विशेष हिस्से के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और आजकल विश्वभर में लोग इसके सुंदर स्वरों का आनंद लेते हैं।
तुर्री

उत्तराखंड के संगीती उपकरण तुर्री, भारतीय संगीत में महत्वपूर्ण वायुवाद्य उपकरण है, जिसे तुर्री घेरे में विचरण करके बजाया जाता है। यह वाद्य उपकरण वायु आपर को उद्देश्य से बढ़ावा देता है और ध्वनि का निर्माण करता है। तुर्री का आकार विभिन्न हो सकता है, लेकिन यह आमतौर पर दोलक के आकार का होता है, जिसमें वायुमंडल में एक छिद्र होता है। इसे वाद्य संगीत के आधारिक उपकरण के रूप में प्रशंसा मिलती है, और यह संगीतकारों के बीच लोकप्रिय है जो तुर्री के सुंदर स्वरों का आनंद लेते हैं।
नगाड़ा
नगाड़ा भारतीय संगीत में एक प्रमुख परंपरागत ढोलक वाद्य उपकरण है, जिसे धोलक की एक विशेष प्रकार के रूप में जाना जाता है। नगाड़ा एक लकड़ी का निर्मित छोटे से बड़े रिंग दार ढोलक की तरह होता है, जिसमें एक साधा ढोलक की तरह लकड़ी की धमनियों का उपयोग किया जाता है।
नगाड़ा को आमतौर पर धर्मिक यात्राओं, उत्सवों, और सामाजिक अवसरों पर बजाया जाता है, ताकि लोग उत्सवी और उत्साहित रहें। इसके वादनकार अक्सर नगाड़ा को बजाते समय जागरूकता और उत्साह का संदेश पहुंचाते हैं। नगाड़ा का ध्वनि प्राचीन भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और यह भारतीय संगीत का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

सारंगी

सारंगी, भारतीय संगीती का प्रमुख सटीक तुरंत निर्मित उपकरण है, जिसे वायुवाद्य संगीत के एक प्रमुख हिस्से के रूप में माना जाता है। सारंगी एक लकड़ी, अक्षर, और कई सिकर की आधारिक धर्मिकता वाला उपकरण होता है, जिसे तारों के माध्यम से बजाया जाता है।
सारंगी का आकार और रूप विभिन्न स्थानों पर थोड़ा भिन्न हो सकता है, लेकिन आमतौर पर यह तीन बड़ी तारों और छोटी तारों से बना होता है, जिन्हें इडियोफ़ोन या स्याहन (sympathetic strings) भी कहा जाता है। सारंगी का वादनकार सारंगी को धोड़कर खड़ा होकर बजाता है और इसके तारों को उंगलियों के माध्यम से प्लक्ष करता है।
सारंगी का वादन भारतीय क्लासिकल संगीत में विशेष महत्व रखता है, और इसे भारतीय संगीत के वाद्य उपकरणों में से एक माना जाता है। यह उपकरण विभिन्न रागों के रूप में विभिन्न सांगत्य और मेलोडी की सांगत्य के लिए उपयोग किया जाता है और भारतीय संगीत की ऐतिहासिक और सांस्कृत
मसक बाजा
मसक बाजा एक प्रसिद्ध वाद्य उपकरण है जो पश्चिमी भारत के संगीत में उपयोग किया जाता है। यह एक प्रकार का तार संगीत उपकरण होता है जिसे तारों की ध्वनि को बजाने के लिए बजाया जाता है. मसक बाजा को “मसक” या “मसकी” भी कहा जाता है.
मसक बाजा में आमतौर पर दो सिकर होते हैं, और यह दो सिकरों को एक संरचित तरीके से खींचने और छोड़ने के माध्यम से तारों की ध्वनि उत्पन्न करता है. यह उपकरण पश्चिमी भारतीय लोक संगीत और लोकनृत्य में विशेष रूप से प्रयोग होता है, और इसकी ध्वनि सौंदर्यपूर्ण होती है.
मसक बाजा का वादन विभिन्न प्रकार के लोक संगीत और रागों के साथ किया जाता है और यह उपकरण पश्चिमी भारतीय संगीत और संस्कृति के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में माना जाता है.

शंख (Conch Shell)

उत्तराखंड के संगीती उपकरण शंख, जिसे अंग्रेज़ी में “Conch Shell” कहा जाता है, एक प्रसिद्ध धार्मिक और संगीतीय उपकरण है, जो भारतीय सभ्यता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शंख एक प्रकार की छोटी सी समुद्र पशु की खोखली की तरह होती है और इसे साधु, पूजा, धार्मिक आयोजनों, यज्ञों, और आराधना में प्रयोग किया जाता है।
शंख की ध्वनि को धार्मिक पारंपरिक संगीत में उपयोग किया जाता है, और इसे हिन्दू धर्म के पूजा अनुष्ठानों के साथ जोड़कर बजाया जाता है। यह ध्वनि ध्यान, समाधि, और पूजा के दौरान ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है और धार्मिक आयोजनों के लिए एक मांग का प्रतीक मानी जाती है।
शंख के विभिन्न प्रकार होते हैं, और वे अलग-अलग धर्मिक पारंपरिक और संगीतीय संदर्भों में प्रयोग किए जाते हैं, जैसे कि दक्षिणाचल, पूर्व, और पश्चिमी शंख।
उत्तराखंड के संगीत उपकरणों की सकारात्मक और नकारात्मक भावनाएं:
सकारात्मक भावनाएं:
- ध्वनि की सुंदरता: उत्तराखंड के संगीती उपकरण अपनी मधुर ध्वनि और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध हैं, जिससे सुनने वालों को आनंद आता है।
- परंपरागत विरासत: ये उपकरण उत्तराखंड की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का हिस्सा हैं और प्रस्तावना को बढ़ावा देते हैं।
- जलवायु अनुकूल: उत्तराखंड के उपकरण आपक्रमण क्षेत्र की जलवायु के अनुकूल होते हैं और विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक साधनों के लिए उपयोगी होते हैं।
नकारात्मक भावनाएं:
- अंतराष्ट्रीय प्रसारण: उत्तराखंड के संगीती उपकरण अंतराष्ट्रीय स्तर पर पूरी तरह से प्रसारित नहीं होते हैं, जिससे उनका संज्ञान विश्व में कम होता है।
- तकनीकी अभिशाप: कुछ उत्तराखंड के संगीत उपकरण प्राचीन तकनीकों का पालन करते हैं, जो उनके सुधार और संवादनशीलता को रोक सकते हैं।
- संरचना और मटेरियल: कुछ संगीत उपकरण अधिक प्रकृतिक और प्राचीन बनावट के होते हैं, जिससे उनके निर्माण और अद्यतनीकरण में कठिनाइयाँ हो सकती हैं।
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